पर्यावरण प्रबंधन

स्वास्थ्य, सुरक्षा व पर्यावरण : सुरक्षित समुदाय और खुशहाल हितधारक (स्टेकहोल्डर) सुनिश्चित करने के तीन स्तंभ

हमारा मानना है कि इंडियनऑयल में, राष्ट्र की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ लोगों और पर्यावरण की रक्षा करना भी संभव है। हम कारोबार को ऐसे तरीके से संचालित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं जो समुदायों की पर्यावरण और आर्थिक आवश्यकताओं के अनुरूप है, जिसमें हम काम करते हैं, और यह हमारे कर्मचारियों, हमारे ग्राहकों और जनता से जुड़े लोगों की सुरक्षा और स्वास्थ्य की रक्षा करता है।

इंडियनऑयल एक मज़बूत पर्यावरण विवेक के साथ अपने कारोबार का संचालन करने, पोषणीय विकास, सुरक्षित कार्यस्थलों और अपने कर्मचारियों, ग्राहकों और समुदाय के जीवन की गुणवत्ता के संवर्द्धन को सुनिश्चित करने के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान करता है। सभी रिफाइनरियां पोषणीय विकास के साथ-साथ व्यावसायिक स्वास्थ्य और सुरक्षा प्रबंधन प्रणाली (ओएचएसएमएस/ओएचएसएएसओ18001) आईएसओ: 14064 मानकों से प्रमाणित हैं। इसके अलावा, ये सभी पूरी तरह से व्यावसायिक स्वास्थ्य केंद्रों से सुसज्जित हैं। सुरक्षा प्रणालियों, कार्यविधियों और पर्यावरण कानूनों के अनुपालन की निगरानी यूनिट, प्रभाग और कॉर्पोरेट स्तर पर की जाती है।

भारत का अग्रणी तेल और गैस कॉर्पोरेट होने के नाते, इंडियनऑयल सुरक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण (एस, एच ऐंड ई) निष्पादन में उत्कृष्टता के प्रति अपनी वचनबद्धता में दृढ़ बना हुआ है। यह घोषणा इस बात को दिखाती है कि इंडियनऑयल के लोग पुनरुत्थानशील भारत की प्रमुख प्रेरक शक्ति के रूप में इंडियनऑयल की क्षमता को पूरी तरह से सिद्ध करने के लिए प्रचालनों, सामाजिक और पर्यावरणीय स्तरों पर कई प्रतिबद्धताओं को लगातार जारी रखे हुए हैं।

इंडियनऑयल में पर्यावरण प्रबंधन

रिफाइनरी प्रचालन के दौरान, अपशिष्ट जल, फ़्लू गैसों और क्षणभंगुर उत्सर्जन और ठोस अपशिष्ट उत्पन्न होते हैं। रिफाइनरियां पानी और ऊर्जा जैसे दुर्लभ संसाधनों की भी महत्वपूर्ण उपभोक्ता हैं। इस प्रकार, प्रदूषण नियंत्रण और संसाधन संरक्षण गतिविधियां इंडियनऑयल में पर्यावरण प्रबंधन के लिए एक प्राथमिक क्षेत्र हैं। अपशिष्ट जल का प्रभावी उपचार और रिसाइक्लिंग, ऊर्जा संरक्षण और प्रदूषण उपशमन एकीकृत गतिविधियों के उदाहरण हैं जिनके परिणामस्वरूप प्रदूषण नियंत्रण और संसाधन संरक्षण दोनों होते हैं।

हमारी रिफाइनरियां निम्नलिखित के लिए लगातार प्रयास करती हैं -

प्रदूषण नियंत्रण और संसाधन संरक्षण

इंडियनऑयल में पर्यावरण प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं का विवरण नीचे दिया गया है।

अपशिष्ट जल प्रबंधन

पानी का उपयोग और बहिस्राव शोधन की गुणवत्ता की सावधानीपूर्वक निगरानी की जाती है। हमारी रिफाइनरियां विभिन्न अपशिष्ट जल धाराओं के पृथक संग्रह के लिए भूमिगत सीवरों के नेटवर्क से लैस हैं, जिन्हें भौतिक, रासायनिक और जैविक प्रक्रियाओं से युक्त अच्छी तरह से डिज़ाइन किए गए बहिस्राव उपचार (ईटीपी) सुविधाओं में विधिपूर्वक उपचार के अधीन किया जाता है।

बहिस्राव उपचार संयंत्रों (ईटीपीज़) में अधुनातन उपकरण मुहैया कराए गए हैं जैसे टिल्टेड प्लेट इंटरसेप्टर (टीपीआई), विघटित वायु फ्लोटेशन (डीएएफ), जैव-टावर, एक्टिवेटिड स्लज बेसिनों, तेल के अपशिष्ट जल का उपचार करने के लिए दोहरे मीडिया फिल्टरों और स्पेंट कॉस्टिक स्ट्रीमों के लिए हाइड्रोजन पेरोक्साइड/गीले वायु ऑक्सीकरण उपचार आदि। इन उपचार सुविधाओं को सुविज्ञ और सटीक निगरानी के लिए परिष्कृत उपकरण और वास्तविक समय निगरानी प्रणाली से समर्थित हैं। विपणन और पाइपलाइन लोकेशनों पर प्रदूषित पानी को तेल जल सेपरेटर के माध्यम से भेजा जाता है।

Aeration Basine
Screw Pumps in Influent Sump
Bio-Tower
Filtration System
Sprinklers in Treated Effluent Pond
जल संरक्षण

इन सभी चरणों से हमारी रिफ़ाइनरियों में 80-95% अपशिष्ट जल का पुन: उपयोग किया जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप ताजा पानी की खपत में काफी कमी आई है।

Rain Water Harvesting
RO Plant

वायु प्रदूषण का निवारण

हमारी रिफाइनरियों में उत्सर्जन को नियंत्रित/कम करने के लिए अत्यधिक ध्यान दिया जाता है। वायु उत्सर्जन के प्रमुख स्रोत बॉयलरों और हीटरों, एफसीसी रिजेनरेटरों और सल्फर रिकवरी यूनिटों से फ़्लू गैसें होती हैं। भंडारण के दौरान हाइड्रोकार्बन रिसाव और वाष्पीकरण पेट्रोलियम उत्पादों और कच्चे तेल की हैंडलिंग और परिवहन दौरान क्षणभंगुर उत्सर्जन के स्रोत हैं। इंडियनऑयल ने उत्सर्जन को नियंत्रित करने और फ़्लू गैसों से प्रदूषण को कारगर ढंग से छितराने के लिए निम्नलिखित उपायों को अपनाया है।

उत्सर्जनों की सावधानीपूर्वक निगरानी के लिए, सभी रिफ़ाइनरी चिमनियों में निरंतर ऑनलाइन विश्लेषक स्थापित किए गए हैं। केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को ऑनलाइन कनेक्टिविटी भी प्रदान की जा रही है।

परिवेशी वायु गुणवत्ता की निगरानी के लिए परिष्कृत उपकरणों से लैस मोबाइल वैन और अचल निगरानी स्टेशन भी हमारी रिफ़ाइनरियों में उपलब्ध कराए गए हैं। विपणन इंस्टालेशनों में, अनुबंध के तहत सभी वाहनों को नियंत्रणाधीन प्रदूषण प्रमाणपत्रों की आवश्यकता होती है जिन्हें नियमित रूप से चेक किया जाता है।

Air Quality Management
Air Quality Management
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन

रोकें, कम करें, पुन: उपयोग करें और पुनर्प्राप्त करें' मौलिक सिद्धांत हैं जो हमारी सभी गतिविधियों को नियंत्रित करते हैं, इसी प्रकार ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के मामले में। रिफ़ाइनरी टर्नअराउंड के दौरान या हमारी बहिस्राव उपचार सुविधाओं के बेसिन और भंडारण टैंक से उत्पन्न तैलीय/रासायनिक/जैविक स्लज यांत्रिक रूप से संभाली जाती है। स्किमिंग पंप, परिष्कृत हाइड्रोसाइक्लोन्स, सेंट्रीफ्यूज इत्यादि के साथ मैल्टिंग पिट्स को स्लज को डिऑयल के लिए लगाया जाता है।

डी-ऑइलिंग के बाद, अवशिष्ट स्लज को कोकर यूनिटों में रिसाइकिल किया जाता है या अच्छी तरह से डिज़ाइन की गई पर्यावरण-सुरक्षित साइटों में बायो-रीमेडिएटेड किया जाता है। आबद्ध बायोरिएक्टर में बायोरिमेडिएशन इंडियनऑयल अनु. एवं वि. द्वारा आंतरिक रूप से विकसित अवशिष्ट तैलीय स्लज के जैव-उपचार में नवीनतम नवाचार है। ऑइलिवोरस-एस कही जाने वाली जनवरी-फरवरी 2017 में चेन्नै के पास एन्नोर में तेल छितराव को व्यवस्थित करने में अग्रणी रही इस पर्यावरणिक रूप से सुरक्षित और साफ-सुथरी तकनीक पर्यावरण संरक्षण पर इंडियनऑयल के फोकस की पुष्टि करती है।

स्पेंट उत्प्रेरक और अन्य अपशिष्ट सीमेंट भट्टियों में एफसीसीयू उत्प्रेरक जैसी विनिर्माण प्रक्रियाओं में लाभप्रद उपयोग के लिए अनुमोदित रीसाइक्लरों को भेजे जाते हैं। औद्योगिक कैंटीन से घरेलू अपशिष्ट को प्रोसेस करने के लिए हमारी रिफ़ाइनरियों में वर्मीकंपोस्टिंग को व्यवहार में लाया जाता है।

ऑयल स्पिल रिस्पांस (ओएसआर) सुविधाएं

ज़मीन या पानी (समुद्री और ताज़े पानी सहित) पर अप्रत्याशित तेल छितराव में तटीय और समुद्री वन्यजीवन, विशेष रूप से प्रवाल (कोरल), मछलियों, पक्षियों, स्तनधारियों और सरीसृपों के लिए गंभीर समस्याएं पैदा करने की संभावना होती है।

इंडियनऑयल का कारोबार व्यापक रूप से वीएलसीसी और अन्य टैंकरों के माध्यम से कच्चे तेल के आयात पर निर्भर करता है जो सिंगल बुवाय मूरिंग (एसबीएम) सिस्टम के माध्यम से अनलोड किए जाते हैं। इस प्रकार समुद्री सक्रियता का सरोकार यह सुनिश्चित करता है कि इंडियनऑयल के पास तेल रिसावों के सभी संभव स्रोतों जिसमें ऑयल टैंकर छितराव, गैर-टैंकर पोत छितराव, एसबीएम से ऑनशोर टैंकों तक पाइपलाइनें और टैंक फार्मों अथवा क्रॉस कंट्री कच्चे तेल और उत्पाद पाइपलाइनें भी शामिल हो सकती हैं, को बंद करने/संभालने के लिए इंडियनऑयल की सुसंरचित प्रणाली मौजूद है।

इंडियनऑयल की परतदार तैयारी और रिस्पांस तेल छितराव की तैयारी और रिस्पांस को हाथ में लेने के लिए एकसंरचित दृष्टिकोण दोनों को स्थापित करने में सक्षम बनाता है। यह संभावित तेल छितराव की घटनाओं को उनकी संभावित गंभीरता और क्षमताओं के संदर्भ में जिनकी रिस्पांड करने के लिए ज़रूरत होती है, वर्गीकृत करने में मदद करता है।

नियामक ढांचे को ध्यान में रखते हुए जिसके तहत इस अपतटीय समुद्री तेल छितराव का प्रबंधन किया जाता है, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम -1986 के अलावा जो भारत में सभी पर्यावरण गतिविधियों के लिए मूल कार्य है, सबसे महत्वपूर्ण और सीधी सहायता नेशनल ऑइल स्पिल आपदा आकस्मिक योजना से आती है, जिसे संक्षेप में एनओएस-डीसीपी के रूप में जाना जाता है। एनओएस-डीसीपी तेल छितराव रिस्पांस से निपटने वाली एकमात्र राष्ट्रीय योजना है, जो विभिन्न संसाधनों की जिम्मेदारियों को अंकित करता है। भारतीय तट रक्षक एनओएस-डीसीपी (भारतीय जल में तेल छितराव की संभाल के लिए) के लिए नोडल एजेंसी है।

ई-अपशिष्ट प्रबंधन

"ई-अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम, 2011 के अनुसार, इंडियनऑयल यह सुनिश्चित करता है कि ई-कचरे को नई खरीद के माध्यम से बायबैक के ज़रिए निपटाया जाए या सरकारी अनुमोदित व्यापार एजेंसी मैसर्स मेटल स्क्रैप ट्रेड कॉर्पोरेशन (एमएसटीसी) के माध्यम से निपटारा किया जाए।


बायो-रिएक्टर में बद्ध स्पेस बायो-रिमेडिएशन

आईओसीएल-आर एंड डी के साथ संयुक्त रूप से किया गया अध्ययन।

परिणाम 17 दिन में

ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण

ध्वनि प्रदूषण के प्रमुख स्रोत इंजन, कंप्रेसर हाउस, टरबाइन हॉल, फर्नेस इत्यादि हैं। इंडियनऑयल के यूनिटों और इंस्टालेशनों ने स्रोत पर ध्वनि को नियंत्रित करने के लिए निम्नलिखित उपायों को अपनाया है।

ईयर प्लग, इयरमफ इत्यादि जैसे निजी सुरक्षा उपकरण (पीपीई) का उपयोग पहचान किए गए उच्च शोर क्षेत्रों में भी किया जाता है।

हरित पट्टियां और पारिस्थितिकी पार्क

इंडियनऑयल पारिस्थितिक और पर्यावरण संरक्षण को हमारे पर्यावरण संरक्षण कार्यक्रमों के केंद्र बिंदु के रूप में मानता है। प्रकृति को वापस देने के लिए, हमारी सभी इंस्टालेशनों पर बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण गतिविधियां आयोजित की जाती हैं।

वैज्ञानिक रूप से डिज़ाइन की गई हरित पट्टियां विकसित की गई हैं, जो प्रदूषण के सिंक के रूप में कार्य करती हैं और सौंदर्यबोध को बढ़ाती हैं। 18 लाख से अधिक पेड़ पहले से ही हमारी हरित पट्टी की शोभा बढ़ाते हैं। पारिस्थितिकीय पार्कों को रिफाइनरियों में हरे रंग के आवरण के साथ विकसित किया गया है जो बड़ी संख्या में पक्षियों के लिए प्राकृतिक वास के रूप में कार्य करते हैं। इन पारिस्थितिकीय पार्कों में आवासी और प्रवासी पक्षियों की 300 से अधिक प्रजातियां फलती-फूलती हैं। यहां देशी और विदेशी पौधों और पेड़ों की 285 से अधिक प्रजातियां उगती हैं।

इसके अलावा, एक हरित पहल के रूप में, ई-पोर्टल लॉन्च किए गए हैं और भुगतान, डेटा अंतरण इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का उपयोग करके किया जाता है। इसके परिणामस्वरूप कागज़ की काफी बचत होती है, जिससे पेड़ काटने को रोका जाता है।

100 हेक्टेयर के समुद्री राष्ट्रीय उद्यान और नारारा बेट (वाडिनार) के पास समुद्री अभयारण्य क्षेत्र में आम्रकुंज वृक्षारोपण किया गया है। पाइलाइन के मार्गाधिकार (आरओडबल्यु) के साथ गांवों में ग्रामीणों के जागरूकता कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं ताकि छोटी-मोटी चोरियों के दौरान तेल रिसाव के पर्यावरणीय प्रभाव के साथ-साथ ऐसी घटनाओं के संपार्श्विक नुक्सान करने वाले लोगों के बारे में ग्रामीणों को संवेदनशील बनाया जा सके।

Mathura Rafinery :Nature's bliss
ऊर्जा कुशल पेट्रोलियम शोधन

रिफाइनरी प्रक्रियाओं और उसके प्रचालन चक्रों के लिए प्रौद्योगिकी चयन के संबंध में ऊर्जा संरक्षण, इंडियनऑयल के निर्णय के केंद्र में है। उन्नत प्रौद्योगिकी और सर्वोत्तम ऑपरेटिंग प्रथाओं को अपना कर प्रचालन सुधार के साथ-साथ विभिन्न ऊर्जा संरक्षण उपायों के कार्यान्वयन के माध्यम से सुधार संभव किए गए हैं।

2010 से, सेंटर फॉर हाई टेक्नोलॉजी (सीएचटी), पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के तत्वावधान में बेंचमार्किंग अध्ययन हर दो साल में एक बार पीयर समूहों के साथ इंडियनऑयल रिफाइनरियों के प्रदर्शन को रैंक करने और दुनिया भर में सर्वश्रेष्ठ रिफाइनरियों में सर्वोत्तम प्रदर्शन के तहत किया जाता है। पहचान की गई कमियों को उपयुक्त ऊर्जा संरक्षण उपायों के कार्यान्वयन के माध्यम से दूर किया जाता है।

इसके अलावा, लाभप्रदता सुधार और अनुकूलन अध्ययन नियमित रूप से बाहरी एजेंसियों जैसे कि केबीसी, मैकिंसे, एनटीपीसी, आदि के साथ-साथ आईओसी के आंतरिक प्रोसेस डिजाइन और इंजीनियरिंग सेल (पीडीईसी) द्वारा किए जाते हैं।

ऑटो ईंधन गुणवत्ता सुधार

इंडियनऑयल ने उत्सर्जन संबंधी मानकों के संदर्भ में और नए पीढ़ी के वाहनों की गुणवत्ता की अपेक्षा को पूरा करने के लिए ऑटो ईंधन की गुणवत्ता का उत्तरोत्तर रूप से उन्नयन किया है। हमारी रिफ़ाइनरियों ने इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए विभिन्न परियोजनाओं को लागू किया है।

पिछले कुछ वर्षों में हरित नवाचार में वृद्धि हुई है और हरित परियोजनाओं में पूंजीगत निवेश में बढ़ोतरी हुई है, भारत को हरित परियोजना निवेश के लिए सबसे आकर्षक देश में से एक माना जाता है।

इंडियनऑयल की हरित ईंधन पहल 1990 में शुरू हुई और उत्सर्जन संबंधी मानकों के संदर्भ में और नई पीढ़ी के वाहनों की गुणवत्ता अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए ऑटो ईंधन की गुणवत्ता को उत्तरोतर उन्नत किया गया है। 2000 और 2010 के बीच, इंडियनऑयल रिफ़ाइनरियों में विभिन्न ईंधन गुणवत्ता उन्नयन परियोजनाओं पर लगभग 20,000 करोड़ रुपये का निवेश किया गया था।

इसके अलावा, हम प्राकृतिक गैस जो कम प्रदूषणकारी ईंधन है, के कारोबार में एक प्रमुख प्रतिस्पर्द्धी के रूप में उभरने के लिए भी काम कर रहे हैं। हम इन शहरों में अन्य प्रदूषणकारी ईंधन को बदलने के लिए सिटी गैस वितरण के अलावा एलएनजी आयात, बुनियादी ढांचे और विपणन में मात्रात्मक वृद्धि को लक्षित कर रहे हैं। औद्योगिक, वाणिज्यिक, परिवहन और घरेलू उपभोक्ताओं को प्राकृतिक गैस की आपूर्ति की जा रही है। इसके अलावा, इन वर्षों में ऑटो एलपीजी की बिक्री में काफी वृद्धि हुई है। इंडियनऑयल 1 अप्रैल 2020 तक 100% बीएस- VI गुणवत्ता ऑटो ईंधन उपलब्ध कराने की चुनौतीपूर्ण समय सीमाओं को पूरा करने के लिए तैयार है। इसके लिए, कॉर्पोरेशन प्रमुख रिफाइनरी उन्नयन, आपूर्ति संभारतंत्र में परिवर्तन और अन्य संबंधित परिवर्तनों में लगभग 15,400 करोड़ रुपये का निवेश कर रहा है।

भारत की हरित ऊर्जा खोज को पूरा करना

इंडियनऑयल की वैकल्पिक ऊर्जा विकल्पों के साथ अपनी ऊर्जा बास्केट में विस्तार करने की महत्वाकांक्षी योजनाएं हैं; कॉर्पोरेशन ने अगले पांच वर्षों में 260 मेगावॉट अक्षय ऊर्जा (पवन और सौर) की स्थापना की परिकल्पना की है। गुजरात, आंध्र प्रदेश और राजस्थान में कुल 168 मेगावाट की पवन ऊर्जा प्रणाली स्थापित की गई है। सौर पीवी की कुल स्थापित क्षमता 20 मेगावाट है, जिसमें 9.5 मेगावॉट ग्रिड से जुड़ी सौर परियोजनाएं और 10.5 मेगावॉट ऑफ-ग्रिड परियोजनाएं शामिल हैं।

कॉर्पोरेशन ने कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए एक प्रमुख पहल के रूप में सौर ऊर्जा पर काम करने के लिए अब तक अपने 6,600 ईंधन स्टेशनों को परिवर्तित कर दिया है। उनकी संचयी क्षमता लगभग 26 मेगावाट है। इंडियनऑयल की विभिन्न रिफाइनरियों, टर्मिनलों, डिपो और आवास परिसरों में लगभग 560 वर्षा जल संचयन प्रणालियां स्थापित की गई है। 950 हेक्टेयर के कुल जलग्रहण क्षेत्रों के साथ, लगभग 3 बिलियन लीटर पानी का सालाना संचयन किया जा रहा है।

भारत 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 33-35 प्रतिशत कमी करने के लिए प्रतिबद्ध है और 2022 तक अक्षय ऊर्जा आधारित क्षमता के 175 जीडब्ल्यू का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। इसके समर्थन में, इंडियनऑयल अपनी ग्रिड से जुड़ी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता बढ़ाने के लिए काम कर रहा है वर्ष 2020 तक 188 मेगावॉट (पवन -16 मेगावाट, सौर -20 मेगावॉट) से वर्तमान में यह 260 मेगावाट तक है। यह 2 जी-इथेनॉल और अपशिष्ट से ऊर्जा परियोजनाएं भी स्थापित कर रहा है। इंडियनऑयल 2020 तक अपने कार्बन फुटप्रिंट को 18 प्रतिशत और पानी के फुटप्रिंट को 20 प्रतिशत तक कम करने के लिए भी प्रतिबद्ध है।

स्वच्छ विकास तंत्र (सीडीएम)

जलवायु परिवर्तन और मानव गतिविधियों से उत्पन्न ग्लोबल वार्मिंग पूरी दुनिया में सबसे बड़ी चिंता है। इस चुनौती को पूरा करने के लिए आर्थिक गतिविधियों के पैमाने और पर्यावरण प्रणालियों पर इसके प्रभाव का आकलन करने के नए तरीकों की ज़रूरत है। हमारी सभी रिफाइनरियों का कार्बन फुटप्रिंटिंग किया जा चुका है।

एक ज़िम्मेदार कॉर्पोरेट नागरिक होने के नाते, इंडियनऑयल न केवल अपने प्रचालन के कारण पर्यावरणीय प्रदूषण को कम करने की दिशा में अपनी ज़िम्मेदारी से अवगत है, बल्कि यह उन उत्पादों को बनाकर पर्यावरण में सुधार करने में भी भूमिका निभा सकता है जो कम से कम प्रदूषण फैलाते हैं और इस प्रयोजन के लिए इसने आवश्यक बुनियादी ढांचा स्थापित करने के लिए बड़े निवेश किए हैं।